Thursday, November 29, 2012

'Owl festival' celebrated in Varanasi

1 comments

Hundreds of people participated in a unique Owl Festival in Varanasi, Uttar Pradesh, to highlight the current state of the country's political class.

A poetry meet was organized and a rally taken around the city, with people dancing and rejoicing.

Rajendra Trivedi, a member of the organizing committee, said the festival was all about fun and frolic. He also said the poets took potshots at the political fraternity over the issue of corruption.

"It's a festival of fun merriment and enthusiasm. This Owl festival is now being organized for the 12th year running. This is a unique event where we take out a procession in honour of the owl. We target the corrupt political leaders and administrative officers through this festival. Famous poets and singers take part in this as well," said Trivedi.

Meanwhile, a poet, Saand Banarasi, said that every year, this festival had a different theme and this year the theme was 'throwing muck', which was decided keeping in mind the way the political parties have been behaving with each other.

"Every year we have a particular slogan and theme. This year it is 'throwing muck'. It has been chosen keeping in mind our corrupt politicians. As you can see today all the political parties doing is blaming each other and throwing muck," said Banarasi.

A series of high profile scandals have rocked the reputation of the Indian political fraternity — including the coal scam, the sale of lucrative mobile phone licences that cost the state possibly US $39 billion in lost revenues and disastrous mismanagement of the Commonwealth Games — appear to be a key tipping point.

Corruption has been worsening in India over the years. Transparency International's corruption index in 2010 ranked India 87th, level with Albania and below China in 78th place.

Wednesday, September 19, 2012

Ganesh Chaturthi

2 comments
भगवान गणेश का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक माना गया है। उनका मस्तक हाथी का है और वाहन मूषक है। उनकी दो पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि हैं। सभी गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गनेश है। परंपरा में हर कार्य के प्रारंभ में इनका स्मरण आवश्यक है। उन्हें विघ्नहर्ता कहते हैं। गणेश में ऐसी क्या विशेषताएं हैं कि उनकी पूजा 33 कोटि देवी-देवताओं में सर्वप्रथम होती है। आइए जानें गणेश की विशिष्टता के बारे में-

ऋग्वेद में लिखा है ‘न ऋते त्वम क्रियते किं चनारे’ अर्थात हे गणेश, तुम्हारे बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जाता है। तुम्हें वैदिक देवता की उपाधि दी गयी है। ú के उच्चारण से वेद पाठ प्रारंभ होता है। गणेश आदिदेव है। वैदिक ऋचाओं में उनका अस्तित्व हमेशा रहा है। गणेश पुराण में ब्रहा, विष्णु एवं शिव के द्वारा उनकी पूजा किए जाने का तक उल्लेख मिलता है।

वाहन चूहा क्यों:-

भगवान गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन चूहा काफी छोटा है। चूहे का काम किसी चीज को कुतर डालना है। वह चीर-फाड़ कर उसके प्रत्येक अंग-प्रत्यंग का विश्लेषण करता है। गणेश बुद्धि और विद्या के अधिष्ठाता हैं। तर्क-वितर्क में वे बेजोड़ हैं। इसी प्रकार मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। काट छांट में उसका कोई सानी नहीं है। मूषक के इन्हीं गुणों को देखकर उन्होंने इसे वाहन चुना है।

गणोशजी की सूंड:-

गजानन की सूंड हमेशा हिलती डुलती रहती है जो उनके सचेत होने का संकेत है। इसके संचालन से दु:ख-दारिद्रय समाप्त हो जाते हैं। अनिष्टकारी शक्तियां डरकर भाग जाती हैं। यह सूंड जहां बड़े-बड़े दिग्पालों को भयभीत करती है, वहीं देवताओं का मनोरजंन भी करती है। इस सूंड से गणोश, ब्रहाजी पर पानी एवं फूल बरसाते है। सूंड के दायीं और बायीं ओर होने का अपना महत्व है। मान्यता है कि सुख-समृद्वि हेतु उनकी दायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए, वहीं शत्रु को परास्त करने या ऐश्वर्य पाने के लिए बायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए।

बड़ा उदर:-

गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी कारण उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वे हर अच्छी और बुरी बात को पचा जाते हैं और किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। वे संपूर्ण वेदों के ज्ञाता है। संगीत और नृत्य आदि विभिन्न कलाओं के भी जानकार हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका पेट विभिन्न विद्याओं का कोष है।

लंबे कान:-

श्री गणेश लंबे कान वाले हैं। इसलिए उन्हें गजकर्ण भी कहा जाता है। लंबे कान वाले भाग्यशाली होते हैं। लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं और अपनी बुद्धि और विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करते हैं। बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने के भी संकेत देते हैं।

मोदक बेहद पसंद -

बड़े पेट वालों को मीठा बेहद पसंद होता है। भगवान गणेश एक ही दांत होने के कारण चबाने वाली चीजें नहीं खा पाते होंगे और लडडू खाने में उन्हें आसानी होती होगी। इसीलिए मोदक उन्हें प्रिय है क्योंकि वह आनंद का भी प्रतीक है। वह ब्रह्मशक्ति का प्रतीक है क्योंकि मोदक बन जाने के बाद उसके भीतर क्या है, दिखाई नही देता। मोदक की गोल आकृति गोल और महाशून्य का प्रतीक है। शून्य से ही सब उत्पन्न होता है और शून्य में सब विलीन हो जाता है।

गणेश जी का दांत:-

भगवान परशुराम से युद्ध में उनका एक दांत टूट गया था। उन्होंने अपने टूटे दांत की लेखनी बना कर महाभारत का ग्रंथ लिखा।

पाश:-

उनके हाथ में पाश है। यह राग, मोह और तमोगुण का प्रतीक है। इसी पाश से वे पाप समूहों और संपूर्ण प्रारब्ध को आकर्षित कर अंकुश से इनका नाश कर देते हैं।

परशु:-

इसे गणेश हाथ में धारण करते हैं। यह तेज धार का होता है और तर्कशास्त्र का प्रतीेक है। वरमुद्रा - गणपति प्राय: वरमुद्रा में ही दिखाई देते हैं। यह सत्वगुण का प्रतीक है। इसी से वे भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।

इस प्रकार गणेश जी का सारा व्यक्तिव निराला है। उनके आंतरिक गुण भी उतने ही अनूठे हैं जितना उनका बाहरी व्यक्तित्व। गणेशजी के सभी प्रतीक सिखाते हैं कि हम अपनी बुद्धि को जाग्रत रखें, अच्छी-बुरी बातों को पचाएं, पापों के शमन के लिए सद्तर्को की धार रखें तथा तमोगुण पर विजय हासिल कर सत्वगुणों का विस्तार करें।

प्रतिमा चित्र खैरताबाद (हैदराबाद) की है लगभग 52 फीट की प्रतिमा है !!! 


गणेश अष्टोत्तर शतनामावली Lord Ganesha 108 Names
ॐ विनायकाय नमः
ॐ विघ्नराजाय नमः
ॐ गौरीपुत्राय नमः
ॐ गणेशाय नमः
...

ॐ स्कन्दाग्रजाय नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ पूताय नमः
ॐ दक्षाय नमः
ॐ अध्यक्शाया नमः
ॐ द्विजप्रियाय नमः
ॐ अग्निगर्वच्चिदे नमः
ॐ इन्द्रश्रीप्रदा य नमः
ॐ वाणिप्रदाय नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदा य नमः
ॐ सर्वतनयाय नमः
ॐ शर्वरीप्रियाय नमः
ॐ सर्वात्मकाय नमः
ॐ श्रृष्टिकर्त्रे नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ अनेकार्चिताय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धिप्रियाय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः
ॐ गजाननाय नमः
ॐ द्वैमातुराय नमः
ॐ मुनिस्तुताय नमः
ॐ भक्ताविघ्नविनाश नाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ चतुर्बाहवे नमः
ॐ चतुराय नमः
ॐ शक्तिसम्युताय नमः
ॐ लम्बोदराय नमः
ॐ शूर्पकर्णाय नमः
ॐ हरये नमः
ॐ ब्रह्मविद्दुत्त माय नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ गृहपतये नमः
ॐ कामिने नमः
ॐ सोमसूर्याग्निलो चनाय नमः
ॐ पाशांकुशधराय नमः
ॐ चंडाय नमः
ॐ गुणातीताय नमः
ॐ निरंजनाय नमः
ॐ अकल्मषाय नमः
ॐ स्वयंसिद्धाय नमः
ॐ सिद्धार्चितपदाम ्भुजाय नमः
ॐ बीजपूरफलाशक्ताय नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ शाश्वताय नमः
ॐ कृतिने नमः
ॐ द्विजप्रियाय नमः
ॐ वीतभयाय नमः
ॐ गदिने नमः
ॐ चक्रिणे नमः
ॐ इक्शुचापध्रुते नमः
ॐ श्रीदाय नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ उत्पालकराय नमः
ॐ श्रीपतये नमः
ॐ स्तुतिहर्षिताय नमः
ॐ कुलाद्रिभ्रुते नमः
ॐ जटिलाय नमः
ॐ कलिकल्मषनाशनाय नमः
ॐ चन्द्रचूडामणये नमः
ॐ कांताय नमः
ॐ पापहारिणे नमः
ॐ समाहिताय नमः
ॐ आश्रिताय नमः
ॐ श्रीकराय नमः
ॐ सौम्याय नमः
ॐ भक्तवांचितदायका य नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ कैवल्यसुखदाय नमः
ॐ सच्चिदानंदविग्र हाय नमः
ॐ ज्ऩानिने नमः
ॐ दयायुताय नमः
ॐ दान्ताय नमः
ॐ ब्रह्मद्वेश विवार्जिताय नमः
ॐ प्रमत्तदैत्यभयद ायनमः
ॐ श्रीकंटाय नमः
ॐ विभुदेश्वराय नमः
ॐ रामार्चीताय नमः
ॐ विधये नमः
ॐ नागराजयाग्नोपवी ते नमः
ॐ स्थूलकंटाय नमः
ॐ स्वयंकर्त्रे नमः
ॐ सामघोषप्रियाय नमः
ॐ परस्मै नमः
ॐ स्थूलतुंडाय नमः
ॐ अग्रगण्याय नमः
ॐ धीराय नमः
ॐ वाघीशाय नमः
ॐ सिद्धिदायकाय नमः
ॐ दूर्वबिल्वप्रियाय नमः
ॐ अव्यक्तमूर्तये नमः
ॐ अद्भुतमूर्तिने नमः
ॐ शैलेन्द्रतनुजोतसंग खेलनोत्सुखमानसा य नमः
ॐ स्वलवन्यसुधासरजतिमन्मथविग्रहाय नमः
ॐ समस्तजगदाधाराय नमः
ॐ मायिने नमः
ॐ मूषिकवाहनाय नमः
ॐ ह्रुष्टाय नमः
ॐ तुष्टाय नमः
ॐ प्रसन्नात्मने नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः